top of page
Search
Dharmraj
Jun 3, 20241 min read
अबोध अर्पण । ।प्रभु ज्यों ज्यों तुम्हारी चौखट पर मेरे प्रत्यंग तक गल रहे हैं मुझमें उमड़ उमड़कर बाध कृतज्ञता हिलोरें लेती है अपनी हर आहुति में मैंआनंदमग्न विभोर हो जाता हूँ उस अबा
प्रभु ज्यों ज्यों तुम्हारी चौखट पर मेरे प्रत्यंग तक गल रहे हैं मुझमें उमड़ उमड़कर बाध कृतज्ञता हिलोरें लेती है अपनी हर आहुति में मैं...
10 views0 comments
Dharmraj
May 27, 20242 min read
सदा सुहागिन
बिरहिन ने उस दिन दीप नहीं बाले मंदिर के गोपुर पर पीठ टेक मुँह फेर ठाढ़ी रही उसकी टेक ठाढ़ फेर आराध्य से रूठ रूठ कहती थी कि सुनो आराध्य...
2 views0 comments
Dharmraj
May 15, 20241 min read
अनुग्रहीत होकर भी मैं अनुगृहीत नहीं हूँ
अनुग्रहीत होकर भी मैं अनुग्रहीत नहीं हूँ तुम्हारी अपार कृपा को तो मेरे शब्द भी छेंक नहीं पा रहे फिर भी मैं जानता हूँ यह न छेंक पाने का...
1 view0 comments
Dharmraj
Apr 29, 20241 min read
निर्वाण की पूर्व संध्या
मुझ लौ को साथ ले नाची हवाओं बुझाने को तत्पर आँधी तूफ़ानों तुम्हें भी निर्वाण का आशीष मिले इस अंतिम बुझन से पूर्व मैंने अपने प्राणों के...
9 views0 comments
Dharmraj
Apr 22, 20243 min read
अंतिम अनुग्रह के झरे फूल
उसने न जाने कितनी यात्रा की है न जाने कितने घरौंदों में उसने पड़ाव डाला है न जाने कितने द्वारों से झूठी मुट्ठी बाँध प्रवेश किया न जाने...
8 views0 comments
Dharmraj
Apr 22, 20241 min read
मेरा प्रेम विदा करो
हे देह अदेह से न्यारे प्रियतम् तुम्हें कैसे ढूँढूँ देह दृष्टि से मेरी दृष्टि शुद्ध करो हे मन अमन से न्यारे सखा तुम्हें कैसे भेंटूँ चित्त...
12 views0 comments
Dharmraj
Apr 22, 20241 min read
अरण्यकोत्सव तृतीय (एक उद्गार)
अँधेरा घुप्प है हवाएँ तेज हैं फिर भी जले दीये को जलाए रखने की कोशिश जारी है जलते-जलते दीया लड़खड़ाकर टिमटिमा जाता है फिर भी बुझता नहीं...
4 views0 comments
bottom of page