काँस के खिले फूलों के
पीछे से उगते हुए हुए सूरज को देख
मैं ने पूछा
‘वह’ कहाँ है
वह कहीं न मिला
फिर काँस के फूलों ने मुझसे पूछा
‘उसके’ लिए मैं कहाँ हूँ
वही वह पाया गया
अरे! मैं कहीं न मिला
भोर की शीतल मंद बयार संग
मैं संदेश भेजता रहा भेजता रहा कि
वह कब मिलेगा
वह कभी न मिला
फिर एक दिन बयार ने मुझसे पूछा
उसके लिए मैं कब हाज़िर हूँ
वही वह है
अरे! मैं कभी भी न रहा
न जाने कितने प्रयासों के बाद भी
जब वह न मिला
तो बगिया से उड़कर आती तितली से
मैंने पूछा
वह कैसे मिलेगा
उड़ती वह मुझसे पूछती गई
उसे कैसे खोया
अरे! पाया गया कि
उसे खोने का उपाय ही नहीं
परिचयों के परिचयों से परिचित होने के बाद भी
जब मैं स्वयं से अपरिचित ही रहा
मैंने निरभ्र आकाश से पूछा
शस्यश्यामला धरा से पूछा
कलकल किलोर करती सरिता से पूछा
धू धू करती चिता से पूछा
आती जाती स्वाँस से पूछा
मैं कौन हूँ मैं क्या हूँ
होना मेरा आख़िर क्या है
कोई उत्तर न आया
बस एक अनूठा असम्भव प्रश्न कौंधा
बिना मेरे जीना क्या है ?
ऊँचे गगन में एक चील मंडरा रही है
आह! यह वक्तव्य वापस लिया गया
फिर भी
ऊँचे गगन में चील मंडरा रही है
धर्मराज
18 Sep 2022
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