चेतना!
प्रेम तापस
प्रेम के मंदिर में एक द्वारपाल है
जिसे हमारी कसौटी के लिए
प्रेम ने ही नियुक्त किया है
जिसे अक्सर हमने
आराध्य प्रेम समझ लिया है
उस मंदिर की चौखट पर
जब हम पहुँचते हैं
वही मिलता है
पहले वह हमारे पूजन थाल देख फूला नहीं समाता
वह हमारे अर्घ्य पात्र का जल
हमारे आँसू
हमारे चुने पुष्प
हमारे नंगे पावों के छाले
हमारा चंदनलेप दीप नैवेद्य
हमारे माथे का स्वेद
सब की वह भूरि भूरि प्रशंसा करता है
हमारे मिलन को विह्वल
हृदय की
हमारे दर्शन को आतुर नयन की
हमारे प्रेम भीने मनमयूर का
वह स्वस्ति गान करता नहीं अघाता
चेतना! प्रेम तापस
वह प्रेम नहीं है
जब हम उसके स्वस्ति गान से अभिभूत
मंदिर में प्रवेश को आगे बढ़ेंगे
वह हमें टोंक
बदल जाएगा
जिन जिन सद्गुणों का
वह स्वस्तिगान करता नहीं अघाया
उन्हीं की वह भर्त्सना करता नहीं थकेगा
जिस फूल को चुनने में हमारे हाथ
काँटों से बिंधे
उन्हें वह मृत और बासी कहेगा
हमारे अतिरेक के आँसुओं को वह
आँखों का गंदा परनाला कहेगा
आरती के दीप को झुलसाने का षड़यंत्र कहेगा
नैवेद्य को फुसलाने का उपक्रम कहेगा
हमारे शीतल लेप के अर्पण को वह
सम्मोहन का विधान कहेगा
मंदिर पहुँचने तक पाँव में पड़े
मिट्टी में सने छालों को
वह पाखंड का आयोजन कहेगा
वही जो क्षण भर पहले तक सुहाता रहा
वह सब उसे अखरता दिखेगा
वही आखर होंगे
वही जीभ होगी
रुख़ भर उसका तुम्हारे लिए बदल जाएगा
जिस मन से उसने तुममें देव गढ़ा
उसी से वह तुममें पिशाच मढ़ेगा
प्रेम तापस ध्यान रखना
प्रेममंदिर के द्वार पर यह द्वारपाल
प्रेम ने ही नियुक्त किया है
वह जब तुम्हारी स्तुति कर रहा है
वह तुम्हारे भीतर हर्ष के अदृश्य बादल
उमड़ा उमड़ाकर पोंछ रहा है
तुम धीर धरे रहना
अपने भीतर प्रकट होते हर्ष के बादल को उमड़ते
विदा होते देखते रहना
वह जब तुम्हारी निंदा कर रहा है
तुम्हारे भीतर वह विषाद की
त्वचा सी हो चुकी काई छील रहा है
तुम धीर धरे रहना
विषाद को छाते हुए जानना
शीघ्र ही तुम विषाद को छीजता जानोगे
उस छीजने को भी अंत तक
जानते जाना
प्रेम तापस
प्रेम के महामिलन से पूर्व
हर्ष विषाद से बने तुमको
तुमसे माँजने के लिए
स्तुति निंदा वह रसायन है
जिसे उसी प्रेम रसज्ञ ने ही जुटाया है
जब तुम स्तुति निंदा से अडोल अकम्प
बच रहोगे
द्वारपाल तुम्हें मुस्कुराकर प्रणाम कर
स्वागत देगा
उस गर्भगृह में जहाँ प्रेम के देवता
साक्षात विराजे हैं
जहाँ से कोई लौटता नहीं
उस प्रेम के गर्भगृह में प्रविष्ट प्रेम तापस
प्रेम ही हो जाता है
धर्मराज
07 February 2023
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