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Writer's pictureDharmraj

रुकी धूप


आँखों में आँसू हों

विकल वेदना गाढ़ी हो

तय है निश्चित तुमसे

धूप किसी की रुकी होगी

तन्हाई गहरी हो

कितना भी हिल मिलकर ना भरती हो

तय है निश्चित तुमसे

तोड़ किसी को खुद जुड़ने में

धूप किसी की रुकी होगी

जीवन में अँधियारा हो

हज़ार हज़ार दीपों के उजियारे में भी

तिल भर पास सूझ न पाता हो

तय है निश्चित तुमसे

अपनी उजियारे की कोशिश में

धूप किसी की रुकी होगी

जीवन बासी ठंडा हो

ताजे की हर कोशिश में

बासीपन ही फेंटा जाता हो

तय है निश्चित तुमसे

खुद में ऊष्मा भरने की कोशिश में

किसी के प्राणों पर पड़ती

धूप रुकी होगी

जीवन की फसल मुरझाई हो

सींच सींचकर भी क्यारी में

एक नन्ही कली भी फूट न पाई हो

तय है निश्चित तुमसे

अपनी क्यारी में धूप जुटाने में

किसी की क्यारी के हक़ की

धूप रुकी होगी

जीवन में यदि

सब बिगड़ा बिगड़ा जाता हो

बनाने की हर कोशिश

बड़े बिगाड़ को लाती हो

तय है निश्चित तुमसे

अपना बनाने की कोशिश में

किसी के हक़ वाली

धूप रुकी होगी

धूप सदा सीधी बहती

न आड़ीं न तिरछी

न बँटती न छिनती

सबको सदा बराबर मिलती

जब हम किसी की धूप रोकते

धूप को अब रुकना है ऐसा समझती

औरों को रोकने में

फिर वह हमसे भी रुक जाती

ओ! धूप से बिछड़ते साथी

हो सके तो

किसी की धूप न रोकना

कम से कम अपनी तो कभी नहीं

धर्मराज

14 October 2022


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