ध्यानशाला सुबह का सत्र, 22 नवंबर 2024
जीवन का वह चेहरा क्या है, जो सभी विकल्पों से मुक्त है? पंछियों, पेड़, पौधों का मौलिक चेहरा क्या है?
ऐसा अपूर्व समय इतिहास में पहले कभी भी नहीं था। यदि ठीक से समझ लिया जाए, तो पल में क्रांति हो सकती है। पर साथ में खतरा भी उतना ही बड़ा है कि समूल नाश भी हो सकता है।
चित्त पर हमने पता नहीं कितने धरातल निर्मित किए हुए हैं। हम क्रोध से क्षमा की ओर, अप्रतिष्ठा से प्रतिष्ठा की ओर गति करना चाहते हैं। एक धरातल से दूसरी तरफ यात्रा करना चाहते हैं। जीवन में दो धरातल हैं ही नहीं, हमने कल्पना में ही अनेकों धरातल बनाए हुए हैं।
जीवन में दो समय भी नहीं हैं। ये कुछ होने की जो आकांक्षा है, यह मानी मनाई बात है। अकेलापन भी मैं या समय का ही उत्पाद है। जो अभी हो रहा है, वह भी समय से मुक्त है। वह जीना क्या है, जिसमें समय के दो विकल्प नहीं हैं? इस प्रश्न के सम्यक उठाने के साथ ही हम पाते हैं कि हम खुद ही गलने लगे।
जीवन के दो चेहरे नहीं हो सकते हैं। अपनों के सामने कुछ और, दूसरों के सामने कुछ और। वह जीवन क्या है, जो सभी चेहरों से मुक्त है? इसका उत्तर नहीं आएगा क्योंकि जो भी चेहरा बनता है वही मैं है। खंडित धरातल, खंडित समय ही चेहरा, यानी मैं है। अखंड की हमें प्रतीति नहीं हो सकती है, क्योंकि प्रतीति हमेशा आभासीय धरातल की ही होती है। जिसकी प्रतीति होगी, वह फिर एक खंड को लेकर के आ जायेगा।
बाहरी यांत्रिकता वहां तक पहुंच गई है, जहां तक चित्त की पहुंच है, जो कुछ भी आंकड़ों पर काम करता है, वह सभी कुछ कंप्यूटर से किया जा सकता है। कंप्यूटर भी अपने अधिकार, स्पर्श, विश्राम, देखने की इंद्रियां तेजी से विकसित कर रहा है। जो भी हमारी आपकी बुद्धि में है, वह कंप्यूटर की पहुंच में भी है। यदि कोई भी चाहत है, तो कंप्यूटर हमारा अपहरण कर सकता है।
हम कंप्यूटर की ही प्रोग्रामिंग के हिसाब से कुछ भी चाहना शुरू कर देंगे। हमारी शत्रुता या मित्रता भी आंकड़ों पर ही तो निर्भर करती है। जितना बड़ा संकट होता है उतना ही बड़ा अवसर भी होता है। कंप्यूटर एक पवित्र शिक्षा भी निकाल कर ला सकता है, जिसमें सभी मार्गों का समन्वय हो। कंप्यूटर मनुष्य की उस संभावना को नष्ट कर रहा है, जिसमें अमृत है।
यहां यह बहुत बड़ा अवसर है कि चित्त पर जो भी कुछ घट रहा है, उससे हमारा मोह भंग हो जाए, क्योंकि वह सब अब कंप्यूटर के दायरे में भी है। जो भी संबंध का आंकड़ा, या कारण है, वह सब कुछ कंप्यूटर के दायरे में आ सकता है। हम सभी स्क्रीन से नियंत्रित हैं। क्या हम अभी भी चित्त, बुद्धि से किसी भी सम्यक निदान अनुभव की उम्मीद रख रहे हैं?
एक व्यक्ति ने कहा कि मुझे कम से कम शब्दों में अध्यात्म का मर्म बताइए। च्यवयंगस्तु ने कहा ध्यान। उस व्यक्ति ने पूछा थोड़ा और विस्तार से बताइए। च्यवयंगस्तु ने फिर से कहा ध्यान। च्यवयंगस्तु ने कहा कि इससे आगे यदि कुछ भी कहा, तो फिर आप नहीं समझ सकते हैं, फिर केवल तिलस्म में ही आपको जाना पड़ेगा।
अमूर्छा, निर्विकल्प जागरण को जीवन में अवसर देने के अतिरिक्त और कोई निदान, कोई समाधान है ही नहीं। जो बेहद ही निर्मम होते हैं, वो करुणा पर घंटों बात कर सकते हैं। हम कहते हैं कि शास्त्र में कुछ नहीं है, पर कृष्णमूर्ति के कहे को हम शास्त्र बनाकर उसको सच मान लेते हैं। यहां बड़ा पाखंड पैदा हो सकता है। पाखंड, मूर्छा है तो हम दूसरे को हेय दृष्टि से देखते हैं। बुद्धि में जो भी कुछ है, तो वो नष्ट ही है। ध्यान के अतिरिक्त कुछ भी है, तो सारा भ्रम उत्पन्न हो जाता है। पर यदि अमूर्छा है, तो यह सब पाखंड लागू नहीं हो पाता है।
बुद्धि में जो कुछ भी है, वह आंकड़ों से निर्मित है, तो फिर अब हम किसी को भ्रष्ट नहीं कह सकते हैं। हम ख्यालों प्रारूपों में ही तो बात कर सकते हैं। बुद्धि, मन में जो कुछ भी है, वह गहरे भ्रम और सम्मोहन का ही तो परिणाम है। कंप्यूटर तो आंकड़े संग्रहीत करके हमको अनेक अनुभव कराता ही रहेगा। हो सकता है कि कंप्यूटर मूर्खों की जमात को नियंत्रित कर लेगा।
कृत्रिम रूप से कंप्यूटर काम वासना हमारे अंदर प्रकट कर सकता है। सोच करके, अनुभव करके अपने को अभ्यस्त करने में तो कंप्यूटर बड़ा उस्ताद है। वैसे ही कृत्रिमता में हमको भी तो बहुत रस मिलता है।
केवल नैसर्गिक जागरण है, जहां पर कम्प्यूटर का कोई हस्तक्षेप संभव नहीं है। निरपेक्ष जागृति में वह शून्य है। वह क्या है, जो मेरी भूमिका से मुक्त है? यहां यदि जीवन जगह ले रहा है, तो वही परम अमृत है।
चित्त में आंकड़ा मात्र का होना ही बड़ा खतरा है। जीवन में दो निदान नहीं हैं। आज मार्ग जैसी कोई घटना बची ही नहीं है। हमारी सारी आस्था सम्मोहन से आ सकती है। मूल बात है कि क्या अभी अमूर्छा को अवसर दिया गया है?
घर में रहना या उसका त्याग करना इससे कुछ फरक नहीं पड़ने वाला है। जीवन यदि हम अपने अनुकूल बनने में लगे हुए हैं, तो यह एक बड़ा खतरा हो सकता है। आंकड़ों के आधार पर भावनाओं के क्षेत्र में भी कंप्यूटर घुस रहा है। निर्विकल्प जागरण है, तो प्रेम बिना आंकड़ों के जीवन में उतरने लगता है।
जागरूकता को अवसर दे दें, उसमें जो रास्ता है, वह अपने आप निकलता चला जाएगा। हम आप आंकड़ा ही हैं, और उसपर पूरी तरह से कंप्यूटर की पहुंच है। यंत्र के हाथ में मत जाइए, निर्विकल्प जागरण ही एकमात्र निदान है। जो भी सीमित है, उसको प्रोग्राम किया जा सकता है।
मशीन को इंसान ने बनाया है, पर मशीन इंसान से बहुत ज्यादा ताकतवर हो सकती है। कंप्यूटर की क्षमता हमारी बुद्धि से बहुत ज्यादा सक्षम है। बाहर की मशीन, भीतर की मशीन से बहुत ज्यादा ताकतवर हो गई है।
सत्य समयातीत है, कम्प्यूटर खंड से बनता है, जबकि सत्य में कोई खंड नहीं है। कंप्यूटर हमारे अंदर रुचि भी पैदा करवा सकता है। कंप्यूटर की पहुंच बस होश तक कभी नहीं हो सकती है। इसलिए एकमात्र समाधान है, अमूर्छा को अवसर देना, हमारी यही सबसे बड़ी जिम्मेदारी रह गई है। जितना बड़ा संकट होता है, समाधान भी उतना ही साफ निकलकर के सामने आता है।
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