नैनों की वेदी पर
चुपचाप
कौन यह अदीप दीप धर गया
जो बिन दीया बिन बाती बिन तेल
निर्धूम बरे जाता है
किसने इसका तेल बिखेरा
कैसे इसकी बाती फैली
किस बड़ भागे से उसका दीया फूटा
न बूँद भर तेल
न तिनके भर की बाती
न औंधा न सीधा दीया
कैसा अदीप दीप यह
जो निर्धूम बरे जाता है
न इसकी कोई ज्योति है
न इसका कहीं उजाला है
नैनों में होकर
नैनों को आँच दिए बिना
कैसा अदीप दीप यह
जो निर्धूम बरे जाता है
न इसके जलने के आदि का कोई
अता पता
न इसके बुझने का कोई उपाय वहाँ
फिर कैसा अदीप दीप यह
जो निर्धूम बरे जाता है
नैन बुझते हैं
जलते हैं
उनके बुझने में बुझने को दिखाता
जलने में जलने को दिखाता
नैनों के जलने बुझने के पार
कैसा अदीप दीप यह
जो निर्धूम बरे जाता है
मैं कँपता हूँ
थिर होता हूँ फिर कँपता हूँ
मेरे कँपने थिर होने से
निष्कंप
आख़िर कैसा अदीप दीप यह
जो निर्धूम बरे जाता है
धर्मराज
24 October 2022
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