मेरे ‘न होने’ से पहाड़ जमे
नदियाँ बही
तितलियाँ उड़ीं अँकुर फूटे
सूरज उगा चँद्र ढला
तारे टिमे
सागर लहराया चंदन महका
मेरे ‘होने’ से क्या हुआ
एक कहानी जो कही गई
कहो तो कहते कहते रह गई
कहानी ही थी सच तो नहीं
कही कही कि नहीं कही
मैं कहानी हूँ यह सच जान
मुस्कुरा मुस्कुराकर मिटता जा रहा हूँ
मेरे न होने से
बयार के बँसवारी में गीत गूँजे
शहतूत में मिठास अमियाँ में खटास घुली
हिरन ने कुलाँच भरी
मोर नाचा
बादलों से घुमड़ उमड़ पानी बरसा
मेरे ‘होने’ से क्या हुआ
एक कहानी जो कही गई
कहो तो कहते कहते रहते गई
कहानी ही थी सच तो नहीं
कही कही कि नहीं कही
मैं कहानी हूँ यह सच जान
मुस्कुरा मुस्कुराकर मिटता जा रहा हूँ
मेरे न होने से अमृत है
आनंद है
जागरण मात्र है
होने से मृत्यु है
दुःख है
प्रमाद ही प्रमाद है
ऐसी मृत्यु दुःख और प्रमाद की
‘मैं कहानी’ सच जान
मुस्कुरा मुस्कुराकर मिटता जा रहा हूँ
आत्मीयजन, कविता में खुद का भी ‘ होना’ ‘न होना’ भी गूथना चाहें!🙏❤️
धर्मराज
30 August 2022
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