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कुछ बड़े अभिशापों में से
जो मनुष्य स्वयं को देता है
एक है
मानसिक रूप से सुरक्षित होना
एक ओस की बूँद भी
सुरक्षित होना स्वीकार नहीं करती
असुरक्षा के वरदान में ही वह
मंद पवन संग नाचती है
उगते सूर्य में झिलमिलाती है
ताज़ी पैदा होती है
ताज़ी ही विदा होती है
हम जीवन के महोत्सव से
टूटे मनुष्य
अपनी सुरक्षा की खोल में सिकुड़ते सहमते
निरंतर विलाप करते जीवन को कोसते
सारे जीवन के
सहज नृत्य गीत गँवाकर
आजीवन अपनी खोल ही अभेद्य करते रहते हैं
धर्मराज
25/04/2020
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